माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को श्राप क्यों दिया था ?

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माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को श्राप क्यों दिया था ?

 


माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को श्राप क्यों दिया था रामचरितमानस् में सोने की लंका का वर्णन किया गया है जो कि  लंका के राजा रावण के नगरी के रुप में की गयी है । रावण एक प्रकाण्ड विद्वान और बलशाली राजा था जो ऋषि विश्रवा के पुत्र था ।
आज हम जानेंगे कि ऋषि विश्रवा को माता पार्वती ने क्यों श्राप दिया था तथा लंका रावण से पहले किसकी धरोहर थी इन सभी तथ्यों पर हम नीचे प्रकाश डालेंगे की आखिर में क्या माता पार्वती के श्राप से ही लंका का विनाश हो गया था या कुछ और कारण था ।


माता पार्वती की स्वर्ण नगर में रहने की इच्छा

भगवान शिव नित्य की भाँति कैलाश पर ध्यान लगाए अपने आसन पर विराजमान थे वह प्रतिदीन माता पार्वती के साथ कैलाश पर निवास करते थे लेकिन उस दिन जब भगवान शिव ने अपना नेत्र खोला तो माता पार्वती उनके पास नही थी । महादेव ने अपने गण आदि को बुलाकर माता पार्वती के बारे में पुछा कि क्या तुम लोगो ने पार्वती को देखा है, पार्वती कही दिख नही रही हैं ।

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तब भोलेनाथ के अतिप्रिय नंदी ने जबाब दिया कि , प्रभु माता प्रात:काल से ही अपने कक्ष से बाहर नही निकली है उन्होने अपने कछ में मौन धारण किया हुआ है । नंदी की बात सुनकर भगवान शिव ने पार्वती की गंभीरता को जानने के लिए उनके कक्ष की ओर प्रस्थान कर दिए ।
जब कैलाशपति ने माता पार्वती के मौन का रहस्य जानने की वीनती की , तब माता पार्वती ने कहा कि हे प्रभु , आप तो जगतपालक है तथा आप पुरे सृष्टी के कण-कण का रहस्य जानते है आपके सामने मेरा मौन का रहस्य रहना कैसे बना रह सकता है ।
माता पार्वती ने भगवान शिव से कहा कि हे प्रभु , हमें कितने दिनो तक इन पाषाण पर तपश्विनी की भांति रहना होगा क्या हम ब्रह्मलोक ,बैकुंठलोक , स्वर्गलोक जैसे स्थान हमारे लिए नही है या हमारे लिए बनाया नही गया है । हे महादेव , मेरी इच्छा है कि इन सुंदर द्वीपो पर हमारा एक अद्भुत स्वर्ण नगरी हो जहां हम आप अपने गणो के साथ रह सके ।

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भगवान शिव द्वारा स्वर्ण लंका का निर्माण

भगवान शिव ने माता पार्वती की इच्छा को मानकर द्वीपो पर एक सुंदर और मनमोहक स्वर्ण नगरी की काया प्रकट की, जिसे देखकर माता पार्वती भावबिभोर तथा प्रसन्न हो गयी तथा उन्होने महादेव से वहा रहने का आग्रह करने लगी , तब भगवान शिव ने पार्वती से कहा कि , हे देवी जिस प्रकार शक्ती, शिव के बिना अधुरी है उसी प्रकार शिव अपने गणो के बिना अधुरा है । अर्थात मै अपने गणो के बिना इस स्वर्ण नगरी में निवास नही कर सकता हूँ  मै अपने गणो के साथ चलूंगा ।
भगवान शिव के इस वाक्य पर माता पार्वती ने भी सहमति जताई और प्रभु माता पार्वती और अपने भक्तो के साथ उस दिब्य स्वर्ण नगरी की ओर प्रस्थान करने लगे ।

स्वर्ण नगरी का गृह प्रवेश

भगवान शिव ने लंका के द्वीप पर भव्य स्वर्ण नगरी का निर्माण किया तथा वे अपने समस्त भक्तगण के साथ उस द्वीप पर जाने के लिए प्रस्थान करने लगे । तभी भगवान शिव ने माता पार्वती से कहा कि हे देवी आपकी कल्पाना के अनुसार हमने लंका द्वीप पर भव्य स्वर्ण मंदिर का निर्माण तो कर दिया है । लेकिन यह दिव्य स्वर्ण नगर नवीन है , अत: इसका गृह प्रवेश करके ही हमें इस नगर में निवास करना चाहिए । महादेव ने देवर्षि नारद की सहायता से इस नगर के गृह प्रवेश के लिए ऋषि विश्रवा को आमंत्रित करने का आग्रह किया ।
महर्षि नारद जब भगवान शिव का निमंत्रण लेकर ऋषि बिश्रवा के यहा पहुचे और उनको महादेव के गृह प्रवेश की बात बतायी । उनकी बातें सुनकर ऋषि विश्रवा और उनकी पत्नी दैत्य राज सुमाली की पुत्री केकसी ने महादेव का निमंत्रण स्वीकार किया ।

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ऋषि विश्रवा को गृह प्रवेश हेतु भगवान शिव द्वारा निमंत्रण


भगवान शिव के निमंत्रण पर लंका द्वीप स्थीत स्वर्ण नगरी के गृह प्रवेश पुजन के लिए समस्त देवी-देवता उपस्थीत हुए । तथा ऋषि विश्रवा के द्वारा स्वर्ण नगरी की पुजन क्रिया प्रारम्भ की गयी । इस भव्य पुजन में संसार के सभी दैवीय शक्तीया तथा ऋषि-मुनियो ने मिलकर भव्य तरह से स्वर्ण नगरी की गृह प्रवेश पुजन की क्रिया-विधी का समापन किया

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भगवान शिव ने लंका के स्वर्ण नगरी के गृह प्रवेश पुजन का संपूर्ण समापन के बाद प्रसन्न होकर ऋषि  विश्रवा को बुलाया और कहा कि हे महात्मा, आपके प्रकाण्ड ज्ञान तथा उचित पुजा विधी से आज लंका की स्वर्ण नगरी का पुजन सिद्ध हो पाया है अत: मै आपसे बहुत प्रसन्न हूँ
तथा मै चाहता हूँ कि आप अपने इच्छानुसार जो चाहे वो दछिणा स्वरुप मांग सकते है, मै आपकी कोई भी इच्छा हो देने के लिए तैयार हूँ ।
ऋषि विश्रवा ने भगवान शंकर की बात सुनकर हाथ जोड़कर बोले हे कृपाल निधान मै आपके दान को स्वीकार करता हूँ परन्तु , मेरा कोई इच्छा नही है कुछ मांगने की इसलिए हे प्रभु हमे क्षमा करें ।
ऋषि विश्रवा की बात सुनकर भोलेनाथ ने कहा कि, हे ब्राह्मण श्रेष्ठ आपके द्वारा देवी पार्वती के इच्छा स्वरुप स्वर्ण नगर का मंगल कार्य सिद्ध हुआ है अत: मै आप से निवेदन करता हूँ कि आपको दछिणा तो मांगनी ही पड़ेगी । ऋषि विश्रवा की मांगने की इच्छा नही थी लेकिन उनकी पत्नी केकसी ने ऋषि विश्रवा को मांगने के लिए बल देने लगी तथा दैत्यराज केकसी ने उनसे इस स्वर्ण नगरी लंका को दछिणा में मांगने के लिए बल देने लगी । लंका की भव्यता देखकर केकसी ने इसे पहले से ही पाने का मन बना लिया था तथा लगातार ऋषि विश्रवा को स्वर्ण नगरी लंका को मांगने का लालच देने लगी ।

माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को श्राप क्यों दिया

अपनी पत्नी की बार-बार लंका नगरी को मांगने के इस आह्वान पर ऋषि विश्रवा को भी लंका को मांगने के लिए बिवस होना पड़ा । अत :ऋषि विश्रवा ने महादेव से कहा कि हे प्रभु , यदि आप मेरे से प्रसन्न है और मुझे कुछ देना ही चाहते हैं तो मुझे यह स्वर्ण नगरी लंका देने की कृपा करें । ऋषि विश्रवा के इस इच्छा से सारे वातावरण में खलबली मच गयी और सभी लोग आश्चर्यचकित होने लगे, भगवान शिव ने ऋषि के इस इच्छा को पूर्ण करने के लिए अपना हाथ उठाया और कहा कि तथास्तु ।
माता पार्वती ने ऋषि विश्रवा को अपने पत्नी द्वारा दिया गया लंका को मांगने के लालच पर बहुत क्रोध आया तथा सभा में खड़ा होकर बोली कि , हे लोभी ब्राह्मण तुने अपने पत्नी के कहने पर मेरे स्वप्न स्वरुप स्वर्ण नगरी को मांगने का लालच किया, तुने अछम्य अपराध किया हैं । अत : मै तुझे श्राप देती हूं कि लंका का पूर्ण विनाश हो जाएगा, इस स्वर्ण नगर लंका में तुम्हारे कोई भी पुत्र सुखभोग की प्राप्ती नही सकेंगे । इतना सब कहने के बाद भगवान शिव और माता पार्वती समस्त देवी देवताओं के साथ वहां से अंतर्ध्यान हो गये । 

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माता पार्वती से श्राप पाने के बाद ऋषि विश्रवा को अपने गलती का अहसास हुआ तथा वे लंका से दुर अपने आश्रम में के बाहर अपनी पत्नी केकसी से वार्तालाप कर रहे तभी अचानक वहां पर भगवान कुबेर का पुष्पक विमान से आगमन हुआ । भगवान कुबेर ने सिर झुकाकर अपने पिता और माता को प्रणाम किया।ऋषि विश्रवा ने अपने पुत्र को आशिर्वाद दिया और कहा कि पुत्र कुबेर मैने लंका को दछिणा स्वरुप दान में पाया है और मै तुम्हे ज्येष्ठ पुत्र होने के नाते मै तुम्हे लंका का राज्य तुम्हे सौंपता हूं । इस बात पर दैत्य राज पुत्री  क्रोधित हो गयी और और वह नराज होकर ऋषि विश्रवा से बोली की आप ने लंका को कुबेर को देकर अच्छा नही किया आपने हमारे पुत्रो के साथ अच्छा नही किया मै लंका को अपने पुत्रो के लिए कुबेर से ले कर रहूंगी ।
और यही हुआ रावण ने कुबेर से सोने की लंका को बलपुर्वक हासिल कर लिया ।

पार्वती के श्राप से लंका का सर्वनाश


रावण एक कुशल योद्धा के साथ-साथ ग्यानी भी था उसको कुबेर द्वारा लंका हासिल कर लेने तथा पुष्पक विमान भी कुबेर से छीन लिया था । उसे अपने लंका तथा अपने शक्ती पर बहुत अभिमान हो गया था, वह समझ रहा था कि उसके जैसा बलशाली तथा लंका जैसा नगर तीनो लोको में नही है । इसी अहंकार के कारण उसने संसार में पाप और अत्यचार करने लगा
उसने संसार के समस्त राजाओ को पराजित कर दिया था । अपने प्रचण्ड बाहुबल से वह न केवल संसार के राजाओ बल्की कई देवताओ आदि को परास्त कर दिया था इसके बल और पराक्रम की भगवान शिव ने भी प्रशंसा किया था । लेकिन लंकापति रावण को अपनी शक्तीयों पर अभिमान था और इससे उसके अंदर अहंकार पैदा हो गया था जो उसको धीरे-धीरे पतन के तरफ आकर्षित कर रही थी । उसे देवताओं से बहुत दिव्य वरदान प्राप्त था । परन्तु रावण ने अपनी शक्तियों का उपयोग जग कल्याण में न करके पाप कर्मो में करने लगा जिससे तिनो लोको में हाहाकार मच गया । समस्त जीव रावण को एक पापी और अत्यचारी राजा समझने लगे जिसका पाप का घड़ा इतना भर गया था तब भी इसने श्रीराम की पत्नी माता सीता का हरण करके लंका ले आया जो उसके विनाश का कारण बनी । 
तब जाकर पुरुषोत्तम राम ने इसके पाप कर्मो की सजा देकर रावण का वध किया और पृथ्वी को इसके अत्याचार से मुक्त किया । इस तरह से माता पार्वती का श्राप सिद्ध हुआ और ऋषि विश्रवा के पुत्र स्वर्ण नगरी का सुखभोग नही सके तथा सभी पुत्रो की मृत्यु हो गयी जिसने रावण जैसे पापी का साथ दिया और जो प्रभु श्रीराम के शरण में चले गये वो बच गए  तथा लंका का सर्वनाश हो गया ।


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