बलराम जी के हल की कथा(The story of Balram Ji's plow)

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बलराम जी के हल की कथा(The story of Balram Ji's plow)


The Story Of baliram plow : भगवान बलिराम श्रीकृष्ण के भाई थे जो द्वापरयुग में श्रीकृष्ण के बड़े भाई के रुप में जन्म लिये थे ये बहुत बलशाली तथा गदा चलाने में बहुत निपुण थे इनका प्रमुख शष्त्र हल और मूसल है जिसका उपयोग ये दुराचारी राक्षसो का संहार करने के लिए करते थे । तो चलिए हम आगे इनके हल और मुसल की कथा विस्तार पुर्वक पढते हैं ।बलराम जी के हल की कथा(The story of Balram Ji's plow) 

 

बलराम जी के हल की कथा

बलराम जी के हल की कथा हिंदी में 

आपको पता है कि बलराम जी हल क्यो अपने पास रखते थे ।
आज हम आपको बलराम जी के हल की कथा के बारे मे बतायेगें।

हल  को कृषि प्रधान भारत का प्रतीक माना गया है हिंदु धर्म मे हल और मूशल की पूजा होती है । ऐसा माना जाता है कि बलराम जी कृषीपालक थे तथा श्री कृष्ण गोपालक थे इसलिए बलराम जी हल चलाते थे इनको हलधर, बलभद्र,बलदाऊ, दाऊ आदि नाम से जाना जाता है तथा ये शेषनाग के अवतार है इनका मूखअस्त्र हल और मूशल है 
भाद्रपद कृष्णपक्ष की षष्ठी को बलराम जी का जन्म उत्सव मनाया जाता है इस दिन मातायें पुत्र की लंबी उम्र के कामना के लिए हल षष्ठी का ब्रत रखती है ।
उत्तर प्रदेश व बिहार मे इसे ललई छठ तथा मध्य भारत मे हर छठ कहा जाता है ,बलराम पर अधारित कुछ कथाये सामने आती है।

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एकबार बलराम और कौरवो मे कोई प्रकार का खेल हुआ, इस खेल मे बलराम की जीत हुई, लेकिन कौरवो ने इनकी जीत को स्वीकार नही किया, इसपर बलराम जी ने क्रोधित होकर अपने हल को बहुत बडा कर लिया जिससे उन्होने समस्त हस्तिनापुर को भूमि के साथ गंगा मे डुबाने चले गये जिससे समस्त हस्तिनापुर मे हाहाकार मच गया कौरव भयभीत हो गये। तत्पश्चताप आकाश मे एक आकाशवाणी हुयी कि बलराम जी की जीत हुयी है इसको सभी ने सुना, तब कौरवो के स्वीकार करने पर बलराम का क्रोध शांत हुआ था। और वो हल रख दिये इसलिए इनको हलधर के नाम से जाना जाता है ।

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दुसरी कथा ये सामने आती है कि जब स्रीकृष्ण द्वारिका मे निवास करते थे तो यह बैकुंठ के समान थी जहां पर इनका भरा पूरा परिवार निवास करता था । इनकी आठ पटरानियाँ थी जिनके बहुत से पुत्र व पुत्रिया थी श्रीकृष्ण की पटरानियाँ मे से एक थी जामवंती जिनसे एक पुत्र था जिनका नाम था सांब। श्रीकृष्ण की ही भाति दिखने मे सुंदर, मनोहर छवि के थे ऐसा माना जाता है कि किसी समारोह मे दुर्योधन की पुत्री लक्ष्मणा से इनकी की भेट हुयी थी जिससे दोनो एक दुसरे के प्रति आकर्षित हो गये तत्पश्चात इन्होने विवाह करने का निर्णय लिया लेकिन कौरव यदुवंशी कृष्ण से अप्रसन्न थे कौरवो ने इनकी विवाह के विरोध मे थे , तब दोनो ने गंधर्व विवाह करने का निर्णय लिया सांब ने गंधर्व विवाह के पश्चात लक्ष्मणा को अपने रथ मे बिठाकर द्वारिका ले जाने लगे तब कौरवो ने अपनी पूरी सेना के साथ आकर उनके रथ को बीच रास्ते मे रोक लिया। सांब ने उनके साथ वीरता पूर्वक युद्ध किया लेकिन कौरव सेना अधिक होने के कारण वे युद्ध हार गये और सांब को कौरव सेना द्वारा बंदी बना लिया गया ।

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जब ये समाचार द्वारिका पहुचा तो श्रीकृष्ण के भाई बलराम ने शांति वार्ता करने के लिए हस्तिनापुर जाने का निर्णय लिये। हस्तिनापुर पहुचकर ये कौरवो से कहा कि सांब को छोड़ दे तथा वधु को सम्मान पूर्वक विदा करने के लिये समझाने लगे , लेकिन कौरवो ने विदा करने से मना कर दिया इसपर बलराम जी बहुत क्रोधित हो गये और वे अपने हल से समस्त हस्तिनापुर को भूमी के साथ गंगा मे डुबाने चले गये इसपर कौरव भयभीत हो गये और उनसे छमा मांगने लगे जिसपर बलराम ने उन्हे छमा कर दिये उसके बलराम के रौद्र रूप को देखकर  कौरवो ने सांब को छोड़ दिया और लक्ष्मणा को सम्मान के साथ विदा किया। सांब और लक्ष्मणा को द्वारिका पहुचने पर इनका विवाह संपन्न हुआ।
यही से प्रभावित होकर दुर्योधन ने बलराम के शिष्य बनने का प्रयत्न करने लगा।

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अंत में -

आज के पोस्ट में आपने भगवान बलिराम के हल और मुसल की कथा

के बारे में पढा और जानकारी हासिल किया ,मुझे उम्मीद है कि बलराम जी के हल की कथा(The story of Balram Ji's plow) की यह

जानकारी आपको अच्छी लगी होगी । धन्यवाद

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